ठनठन सेंटर एक साल पहले शुरू हुआ है। और इस एक साल के दौरान हमने किसी भी बच्चे से फीस नहीं ली है। एक साल के बाद, हम देख रहे थे कि बेडे पर बच्चों के शिक्षा के लिए पर्याप्त सामग्री नहीं है।
, हमने सोचा की सभी बच्चों के अभिभावक (पेरेंट्स) को फ़ीस के रूप में योगदान देने के लिए प्रोत्साहित करेंगे तो सभी की स्कुल के प्रति जिम्मेदारी की भावना भी बढ़ेगी और बच्चों के लिए साधन भी जुटा पाएंगे। । हमें खुशी हुई कि समुदाय के ज्यादातर लोग फीस देने के लिए तैयारी दर्शाई। लेकिन फिर एक प्रश्न आया कि क्या सभी लोग वाकई फीस देंगे? हम तीनों शिक्षा-साथियों ने मिलकर सोचा की हम अभिभावक सभा में सभी से इस विषय पर बात करेंगे। । लेकिन स्कुल शुरू होने के बाद पिछले दो महीनों में हमने चार-पांच बार पैरेंट्स मीटिंग का आयोजन करने का प्रयास किया लेकिन कोई भी मीटिंग सफल नहीं हुई। जुलाई महीने की फीस के बारे में हमने हर घर में जाकर बात की। कुछ लोगों ने अच्छा प्रतिसाद दिया लेकिन कुछ लोगों का प्रतिसाद बिल्कुल विरुद्ध था! फीस क्यों ली जा रही है? हमारे पास सरकारी स्कूल होने के बावजूद फीस क्यों मांगी जा रही है? इत्यादि इत्यादि। हमने एक महीने की फीस कलेक्ट करने के लिए घर-घर जाने का प्रयास किया। लेकिन बहुत प्रयास के बाद ही कुछ फीस कलेक्ट हो सकी, और कुछ बच्चों की फीस अभी भी नहीं आई थी। तब हमने उन बच्चों की फीस कलेक्ट करने के लिए एक पेरेंट्स सभा बुलाई।
अभिभावक सभा के लिए कुछ पेरेंट्स नहीं आए। लेकिन फिर दूसरे दिन हमने कि स्कूल के सामने ही एक छोटे से झाड़ के नीचे बेडे के 12-13 पैरेंट्स बैठे थे और वे चर्चा कर रहे थे। हम तीनों ने सोचा कि हमें इन पेरेंट्स के पास जाकर इस मुद्दे पर बात करनी चाहिए। हालांकि हम डर रहे थे, क्योंकि हमारे मन में बहुत सारे प्रश्न थे। हमने सोचा कि हम उनसे क्या बोलेंगे? अगर वे हमें पूछेंगे की सरकारी स्कूल होने के बावजूद फीस क्यों मांग रहे हैं, तो हम क्या जवाब देंगे? हम इस सवाल के साथ ही उनके पास गए। हमने कुछ देर सभी से बात की। उनके बच्चों के बारे में पूछा। उन्हें कुछ सवाल हो तो पूछने को बताया। साथ ही में उन्हें बताया कि बच्चों की फीस अभी तक पैसे नहीं जमा हुई है।
हमारे लिए सुखद आश्चर्य की बात ये थी की हम जो सब सोच रहे थे ऐसा कोई सवाल उन्होंने नहीं पूछा। उन्होंने हमारे साथ बात की और हमसे बोले, “ मैडम आप सिर्फ सारे बच्चों की लिस्ट दे दो, हम सभी से फ़ीस जमा करके आपको देंगे, आपको घूमने की जरूरत नहीं। हमने उन्हें बच्चों की लिस्ट दे दी। कुछ ही समय बाद वे पैसे जमा करके हमें देने के लिए आए, और साथ ही में बेडे की पेरेंट्स कमेटी बनाई। इस तरह से, हमारी पहली मीटिंग सफल हो गई।
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–निशांत मेश्राम
बालसभा एक महत्वपूर्ण परियोजना है, जो हमारे डे बोर्डिंग केंद्र पर प्रतिमाह होती है। इसमें हर महीने विभिन्न विषयों पर आधारित कार्यक्रम होता है, जो महीने के विशेष त्योहारों या दिनों के साथ जुड़ते हैं।
जैसे की अगर पर्यावरण दिवस होता है, तो उस महीने का विषय पर्यावरण होता है। इसी तरह अगस्त में हमने छात्रों को स्वतंत्रता दिवस के महत्व को समझाने का कार्यक्रम आयोजित किया। हमने बच्चों के एक नाटिका प्रस्तुत करना तय किया जिसमें हमारे छात्र उन क्रांतिकारियों की भूमिका का निरूपण करेंगे जिन्होंने हमें आजादी दिलाने के लिए योगदान दिया। इसके माध्यम से, हम छात्रों को स्वतंत्रता दिवस के महत्व को समझा सकते थे। लेकिन यह नाटिका तैयार करने का काम कठिन हो सकता था, क्योंकि इसमें बड़े वाक्य शामिल थे। छात्र इन वाक्यों को अच्छे से समझ पाए और ध्यान रख पाए इसलिए हमने छात्रों को इन क्रांतिकारियों के बारे में और जानकारी दी और पर्याप्त तालीम करवाई।
स्वतंत्रता दिवस के दिन के लिए हमें बच्चों को तैयार करना था, लेकिन छुट्टी के कारण हमारे पास समय की कमी थी। हमने सभी किरदारों के लिए कपड़े और सामग्री खोजना शुरू किया। अंत में, हमने पांच-छह किरदारों का चयन किया, जिनमें से हमने केवल चार किरदार का कास्टिंग किया, जैसे कि भगत सिंह, झाँसी की रानी, महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस। लेकिन इस बार बच्चे अधिक आत्मविश्वासी थे, क्योंकि निधि ने उनकी पोशाकों को बहुत ध्यान से तैयार किया था। इसलिए हमें कोई चिंता नहीं थी। फिर ध्वजारोहण के कार्यक्रम का समय आया और हमने बच्चों को आगे ले गए , हालांकि हमें थोड़ी चिंता हुई। लेकिन हमेशा की तरह, बच्चे सही समय पर समझ गए। सौरदीप को भगत सिंह का किरदार दिया गया। वह अपने वाक्यों को बढ़िया तरीके से प्रस्तुत करता था, परन्तु जरूरत पड़ी तो दूसरों के भी वाक्य याद रखने में उसने मदद की। जब वह संवाद करता तो वह केवल उन वाक्यों को कहता जो उस समय सबसे योग्य थे। भावना ने जैसे ही बोला, “सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है,” दर्शकों की तालियां गूंज उठी। झांसी की रानी का किरदार कंचन कर रही थी। वह शांत आवाज़ में बहुत वीरता दिखा रही थी, और सुनने वालों को गर्व महसूस हुआ, क्योंकि वह झाँसी की रानी को बहुत अच्छी तरह प्रस्तुत कर रही थी। उन्होंने अपने किरदार को जीवंत और प्रेरणास्पद बना दिया।
मुख्य अतिथि ने बच्चों की प्रशंसा की और सेवा संस्थान के अन्य शिक्षकों और स्वयंसेवकों ने आज की बालसभा के स्वतंत्रता दिवस की सराहना की। साथ ही इन बच्चों के रूप में उपस्थित क्रांतिकारियों का सम्मान किया।