संकलन आणि संपादन – निकिता देवासे
बोथली – कहानी स्टूडेंट लीडर की
– प्रतीक्षा पखाले
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आज का दिन मेरे लिए विस्मयकारी था। आज तेजल में मैंने एक सच्चे स्टूडेंट लीडर को देखा।
तेजल को शुरुआत से ही पढ़ाना बहुत पसंद है। जब भी कोई उससे पूछता, “तुम्हें क्या बनना है?” तो वह हमेशा कहती, “मुझे टीचर बनना है।” वह घर पर अपने छोटे भाई-बहनों को भी सिखाती है।
जब उसे पता चला कि स्टूडेंट लीडर के लिए उसका नाम चुना गया है और उसे बच्चों को पढ़ाना है, तो वह बहुत खुश हुई। शुरुआत में, बच्चों को पढ़ाने के लिए मैंने उसे छोटे-छोटे खेल दिए और समझाया कि इन खेलों से बच्चों को पढ़ाना है। तेजल ने बच्चों को बहुत अच्छे तरीके से पढ़ाया। स्टूडेंट लीडर प्रोजेक्ट शुरू होने के बाद से उसमें एक अलग ही उत्साह देखने को मिला है। जब उसे क्लास लेनी थी और लेसन प्लान बनाना था, तो उसने कहा, “ताई, मुझे लेसन प्लान बनाकर दो।” मैंने उससे पूछा, “तेजल, जब मैं तुम्हें पढ़ाती हूं तो क्लास कैसे लेती हूं?” उसने लेसन प्लान के सभी हिस्सों को सही-सही बताया।
आज उसने क्लास ली। वह क्लास लेने के लिए बहुत उत्साहित थी। तेजल आज समय से पहले क्लास में पहुंची और खुश होकर सबको बताया, “मैं आज क्लास लेने वाली हूं।” उसने पूरे दिन की क्लास कंडक्ट की। सुबह की प्रार्थना, फीलिंग्स से लेकर क्लास की क्लोजिंग तक उसने सब कुछ संभाला। क्लास के बाद, जब तेजल से उसका रिफ्लेक्शन लिया गया, तो उसने बताया: “मुझे क्लास लेते समय बहुत मज़ा आया। अगली बार मैं खेल-खेल में सिखाऊंगी ताकि बच्चों को आसान लगे और वे हल करना सीख जाएं। मैंने सोहम को गणित सिखाया, और उसे समझ आ गया, तो बहुत अच्छा लगा।
लेकिन पूजा को जो पढ़ा रही थी, वह उसे समझ नहीं आ रहा था। मुझे उसे थोड़ा आसान गणित देना चाहिए था और बेहतर तरीके से समझाना चाहिए था। हमें जितना खेल-खेल में पढ़ाएंगे, उतना ही जल्दी बच्चों को समझ आएगा।” तेजल ने एक ही ऑब्जेक्टिव को अलग-अलग तरीकों से सिखाने की कोशिश की। अंत में, होमवर्क देखकर क्लास की क्लोजिंग भी अपने तरीके से की।
तेजल की खास बात यह थी कि वह बच्चों को उनकी अपनी भाषा में पढ़ा रही थी, जो क्लास की सबसे बड़ी खूबी थी।
चक्रीघाट – जहां बच्चे वहां हम
– कोमल ग़ौतम
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छह महीने से मैं चक्रीघाट बेड़े पर प्राथमिक कक्षा के बच्चों को पढ़ा रही हूं। अब इस बेड़े को स्थलांतरित हुए तीन महीने हो चुके हैं। जब बेड़ा स्थलांतरित हुआ, तो हम भी उनके साथ नई जगह पर पहुंचे। बेड़ा बहुत दूर-दूर तक घूमता है, इस वजह से उनके साथ लगातार जाना हमारे लिए संभव नहीं होता।
बेडा स्थलांतरित होने का बच्चों की पढ़ाई पर गहरा असर पड़ता है। बच्चों को इस साल जो पढ़ाया जाता है, वह अगले साल याद नहीं रहता। इस वजह से हर साल वही पाठ उन्हें फिर से पढ़ाना पड़ता है।
इस साल हमने सोचा कि भले ही हम उनके साथ हर समय नहीं जा सकते, लेकिन कभी-कभी उनसे मिलने तो जा सकते हैं। इसलिए, इस साल हमने तय किया कि हम हर हफ्ते बेड़ा विजिट करेंगे। अब हम नियमित रूप से हर सप्ताह बेड़ा विजिट करते हैं।
बेड़े तक पहुंचना हमारे लिए बेहद चुनौतीपूर्ण है। इनके बेड़े सड़क के पास नहीं होते; वे जंगल के भीतर के क्षेत्रों में रहते हैं। वहां तक पहुंचने के लिए पगडंडियों से जाना पड़ता है। कई बार हमें लिफ्ट लेकर किसी तरह वहां पहुंचना पड़ता है। हर विजिट के दौरान, हम बच्चों के लिए कई वर्कशीट्स, कहानी की किताबें और शिक्षण सामग्री लेकर जाते हैं। हम बच्चों को किताबें पढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं और उन्हें इतना सिखाने की कोशिश करते हैं कि वे पूरे सप्ताह खुद से अभ्यास कर सकें।
बच्चे भी हमारी राह देख रहे होते हैं। जब भी हम बेड़े पर पहुंचते हैं, बच्चे खुशी से बताते हैं, “दीदी, देखो, आपने जितनी वर्कशीट दी थीं, हमने सारी हल कर ली हैं।” कोई कहता है, “दीदी, मैंने यह किताब पढ़ी है, बताऊं इसमें क्या लिखा है? हमें और किताबें दीजिए, हम और पढ़ेंगे।” ऐसे क्षणों में लगता है कि काश बेड़ा एक ही जगह पर रहता। अगर स्थलांतरण न होता, तो बच्चों में शिक्षा के प्रति और भी गहरी जिज्ञासा और उत्साह होता। हमारा प्रयास जारी है। हम पूरी कोशिश कर रहे हैं कि बच्चों को जितना हो सके पढ़ाएं और उनकी शिक्षा तक जितने अधिक संसाधन पहुंचा सकें, वह पहुंचाएं।
सोनखांब – प्राथमिक शाळेतील मुलांची भेट
– प्रीतम नेहारे
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आज ‘नवीन वर्षानिमित्त’ परिसर भेट आणि स्नेहभोजनाचा कार्यक्रम बेड्यावर आयोजित केला होता.
प्राथमिक शाळेतील शिक्षक आणि विद्यार्थी आज आपल्या बेड्यावर आले होते. शाळा स्वच्छ करणे, आजूबाजूचा परिसर साफ करणे आणि मुलांसोबत सरांच्या स्वागतासाठी समुदायातील लोकांना तयारी करण्याची जबाबदारी दिली होती. प्रत्येक मुलाला त्याची भूमिका वाटून दिली गेली होती.
ठरल्याप्रमाणे आम्ही सगळे आज शाळेत जमलो. समुदायातील लोक, तेथील स्त्रिया आणि आपली चिमुकली मुलं सरांच्या आणि मुलांच्या स्वागतासाठी सज्ज होती. सरांचे आणि मुलांचे आगमन पारंपरिक पद्धतीने करण्यात आले. स्वागत सोहळ्यात सोनखांब शाळेतील मुख्याध्यापक पराठे सर, गोके सर, धारपुरे सर, भोंगे सर, आणि खिचडी बनवणाऱ्या काकू यांनी सहभाग घेतला होता.
खेळ, पुस्तकं आणि आनंदाचा उत्सव
कुणाल दादा, निखिल दादा आणि मी मुलांसोबत विविध खेळ खेळत होतो. शाळेच्या भिंतींवर असलेली शब्दचित्रे, मुलांनी आणि मी मिळून तयार केलेली टूल्स, खेळणी आणि नवनवीन गोष्टींची पुस्तके मुलांसाठी आकर्षणाचा केंद्रबिंदू होती. मुलांना मुक्तपणे खेळू देणे हा कार्यक्रमाचा महत्त्वाचा भाग होता. मुलांचा उत्साह पाहण्यासारखा होता. त्यांच्यासाठी तो एक “दप्तरमुक्त दिवस” ठरला होता. मुलं गोष्टींच्या पुस्तकांमध्ये इतकी गुंग झाली होती की त्यांना ते हातातून सोडवेना. पुस्तकं वाचण्यासाठी आणि पाहण्यासाठी मुलांचा घोळका तयार झाला होता.
स्नेहभोजन आणि संवाद
शाळेतील शिक्षक आणि इतर कर्मचारी स्नेहभोजन तयार करण्यात व्यस्त होते. रतन दीदी आणि बेड्यातील इतर स्त्रियांनीही तयारीत सहभाग घेतला. स्नेहभोजनासाठी पालक, शिक्षक, समुदायातील लोक, आणि पाहुण्यांनी एकत्र येऊन स्वादिष्ट जेवणाचा आनंद घेतला. रामजींनी समुदायासाठी असलेल्या गरजा आणि शाळेसाठी केलेले प्रयत्न यावर चर्चा केली. शाळेच्या सुविधांमध्ये झालेला बदल, खेळ, पुस्तके, आणि शाळेच्या प्रवासाचे वर्णन ऐकताना शाळा जणू बोलकी झाली होती.
अविस्मरणीय क्षण
बेड्यातील मुलं, समुदायातील लोक, आणि शाळेतील शिक्षक आनंददायी वातावरणातून परतीच्या दिशेने निघाले.
आजचा दिवस अक्षरशः विस्मरणीय होता. नवीन वर्षाची सुरुवात बेड्यातील समुदाय, मुलं, आणि आम्ही एकत्र घालवलेल्या क्षणांनी वर्षभरासाठी ऊर्जा, आनंद, आणि शिकवण दिली आहे.
मुलांकडून, मोठ्यांकडून आपण शिकत राहतो. प्रत्येक जण, प्रत्येक मुलगा, प्रत्येक शिक्षक आणि समुदायाने आज मला नवीन काहीतरी शिकवले आहे.
असोला – रिद्धि का नेतृत्व
– सुषमा महारवाडे
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इस साल हमने ‘स्टूडेंट लीडर’ यह प्रोजेक्ट शुरू किया है। इस प्रोजेक्ट में हमारे alumni, जैसे कि पाँचवी कक्षा के छात्र, स्टूडेंट लीडर बनते हैं और छोटे बच्चों को पढ़ने में सहायता करते हैं।
रिद्धी का अनुभव
रिद्धी, जो पाँचवी कक्षा की छात्रा है, इस प्रोजेक्ट की एक शानदार उदाहरण है। उसे छोटे बच्चों को पढ़ाना बेहद पसंद है। वह पहली और दूसरी कक्षा के बच्चों को पढ़ाती है। जब उसने बच्चों को पढ़ाना शुरू किया, तो उसे बहुत अच्छा लगा। छोटे बच्चे उसके पास बैठते हैं, और उनकी छोटी उम्र को ध्यान में रखते हुए वह उनसे भरवाड़ी भाषा में बात करती है। बच्चे उसे “बोन बोन” (बहन) कहकर बुलाते हैं, जो रिद्धी को बहुत अच्छा लगता है।
एक दिन मैंने रिद्धी से पूछा, “बच्चों को पढ़ाते समय तुम्हें कैसा लगता है?”
उसने उत्साहित होकर जवाब दिया, “बहुत अच्छा लगता है। एक अलग ही ऊर्जा महसूस होती है। अब मुझे समझ में आ रहा है कि बच्चों को पढ़ाना आसान नहीं है। वे बहुत परेशान करते हैं, लेकिन आप लोग उन्हें उतने ही प्यार से पढ़ाते हो। यह मुझे बहुत अच्छा लगता है।”
रिद्धी की जिम्मेदारियाँ
रिद्धी के मम्मी-पापा चारा लेने जाते हैं, इसलिए रिद्धी और उसका भाई घर के सारे काम संभालते हैं। रिद्धी घर के काम निपटाकर स्कूल आती है, जिसकी वजह से वह कभी-कभी देर से पहुँचती है। ऐसे में वह हमसे कहती है, “आप क्लास मत लेना, मैं छोटे बच्चों को जल्दी पढ़ा दूँगी।”
वह स्कूल में पहली और दूसरी कक्षा के बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ घर पर अपने दो भाइयों को भी पढ़ाती है।
पढ़ाने की पद्धति और प्रभाव
रिद्धी अलग-अलग टूल्स और एक्टिविटीज़ का इस्तेमाल करके बच्चों को पढ़ाती है। उसे देखकर अन्य छोटे और बड़े बच्चे भी एक-दूसरे को पढ़ाई में मदद करने लगे हैं। इस प्रोजेक्ट की वजह से alumni छात्रों में सकारात्मक बदलाव साफ़ नज़र आता है।