सोनखांब के जिला परिषद के स्कूल में हमारे फेलोज और स्कूल के अध्यापको पहल से इस वर्ष अध्यापक दिवस [ शिक्षक दिन] मनाया गया। बच्चो ने अपने प्रिय अध्यापक जैसे वेश परिधान किये और अपने पसंदीदा विषयो को चुनकर कक्षा में पढ़ाया।
दिनांक १० सितंबर – सोनखांब – बेड़े के हरी भैय्या का बच्चो की शिक्षा में सहयोग करने हेतु बच्चो को उपहार।
किसी की एक छोटी दिखाई पड़ने वाली कृति भी बहुत महत्वपूर्ण होती है। ऐसे ही हमारे हरी भैय्या है। बच्चे जब आपस में बात कर रहे थे की उनके पास स्कूल जाने के लिए टिफिन बॉक्स कम पड़ रहे है और उन्हें जरुरत है तब हरी भैय्या पास ही में खड़े थे। उन्होंने बच्चो को उनकी जरुरत का सामान देने का विचार किया। वह तुरंत पास ही के शहर में गए और टिफिन बॉक्स के साथ कुछ खेलने का सामान भी ले आये। बच्चो की शिक्षा की जिम्मेदारी जब अभिभावक लेने लगते है तब ज्यादा बड़ा बदलाव आता है। और लर्निंग कम्पॅनियन्स के तौर पर हमारा यही लक्ष्य है।
अंगणवाडी सेविका की अनियमितता और सुविधा न मिलने के प्रश्नो से पारधी समुदाय के लोगो ने अपनी समस्याएं रखी। हमारे फेलोज ने इसकी जांच पड़ताल कर अंगणवाडी सेविका से संपर्क किया और उन्हें पारधी समुदाय में लेकर गए। वहा लोगो ने अपनी समस्याएं बताई। इस समस्या का निवारण करने हेतु हमारे फेलोज समुदाय के साथ मिलकर काम कर रहे है।
दिनांक १६ सितंबर – आनंद निकेतन [नई तालीम समिति ] – गांधीजी की शिक्षा को लेकर विचार और संकल्पना से शुरू हुए आनंद निकेतन सेवाग्राम को हमारे फेलोज की भेंट ।
नयी तालीम समिति की आनंद निकेतन की संकल्पना से हम परिचित हैं। यहाँ की पूरी शिक्षा पद्धति गांधीजी के विचारो से ही प्रेरित है। साथ ही यहाँ बच्चो को पारम्परिक शिक्षा के साथ उनके मूल्यों पर भी काम किया जाता है। इसी पद्धति का अनुभव करने के लिए हमारी पूरी टीम ने भेंट की। हमने यहाँ चलनेवाली पद्धति , गतिविधियां और बहुत सी बारीकियों को सीखा। लर्निंग कम्पॅनियन्स हमेशा से ही ऐसी जगहों को अनुभव करती है जो शिक्षा में सकारात्मक बदलाव लाने हेतु कार्य कर रहे हैं।
भरवाड़ समुदाय के हमारे नए स्कूल चक्रीघाट के लिए झोपड़ी का काम शुरू हुआ। हमारे फेलोज ने समुदाय के साथ बात कर झोपड़ी बांधने को लेकर तैयारी शुरू की। समुदाय ने उत्साह से स्कूल निर्माण में भाग लिया। जब समुदाय साथ आकर सहभागिता दर्शाता है तो एक प्रभावशाली बदलाव की नींव राखी जाती है।
दिनांक २३ सितंबर – लर्निंग कम्पॅनियन्स – “फेलोशिप के बाद भी हमारे बच्चो से हमारा जुड़ाव ” इस विषय पर Teach For India के सदस्यों का हमारे फेलोज के साथ संवाद सत्र।
हमारे कुछ फेलोज इस साल अपनी २ वर्षो की शिक्षा साथी फेलोशिप पूरी करने जा रहे है। परन्तु फेलोशिप के बाद भी बच्चो से जुड़ाव कायम रहे यह यह हमारे फेलोज की इच्छा है। इन सबमे जो फेलोज इस अनुभव से जा चुके है उनके साथ यदि संवाद करे तो बहुतसे प्रश्नो के उत्तर मिल पाएंगे इस विचार से Teach For India के फेलोज रह चुके नेहा, प्राप्ति और पूर्वा इनके साथ हमारे फेलोज ने बातचीत की।
शिक्षा पद्धति में छात्र नेतृत्व यह एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। इसी विचार को वास्तव में लेन के लिए हमारे फेलोज काम कर रहे है। इसी का एक उदहारण हम हमारे ठनठन की स्कूल में देख सकते है। उम्र से बड़े छात्रों को छोटे छात्र को पढ़ाने का कार्य दिया गया। यहाँ हमारे फेलोज और स्कूल के बड़े बच्चे मिलकर क्लास संभालते है। और जब छोटे बच्चो की क्लास समाप्त होती है तब फेलोज बड़े बच्चो की क्लास लेते है। यह पहल एक बड़े बदलाव के रूप में उभर के आएगी ऐसा विश्वास है।
छात्रों को अंध और अपंग या किसी भी शारीरिक कमी वाले लोगो के प्रति सहानुभूति को बढ़ावा देने हेतु हमारी फेलो द्वारा बच्चो के साथ एक गतिविधि की गयी। बच्चो को स्वयं उन्ही के जैसे अनुभव दिए गए। इस प्रकार से दुसरो की कठिनाइयों की समज़ना और समानुभूति तैयार होने यात्रा बच्चो बच्चो में मूल्य विकसित करने में मदद करेगी।